ये मन में है मेरे


अधुरा सा है कुछ, पूरा नहीं हुआ 
मन के अंदर ही जैसे बस रह गया,
अटका सा है, थोड़ा उलझा हुआ,
समझने में इसको कुछ वक़्त लगेगा,
मैने सोचा इसको यहीं छोड़ दूँ,
जो बाक़ी काम है, उन पर ध्यान दूँ,
मगर मन है कि कहीं लग ही नहीं रहा,
रह रह कर फिर वहीं जा रहा,

मैं चाहती हूँ समझना ये आखिर है क्या,
मगर मुझे कुछ साफ़ नहीं दिख रहा,
मैं आगे पीछे सब तरफ से कोशिश कर रही हूँ,
क्युँ सिमटा सा है, कोने में है पड़ा,
ये टुकड़ों में बिखरा, अँधेरे में है रखा,
मगर अंदर से चमक है रहा,
ये टुटा हुआ है , या अभी बन है रहा,
ये सिमटा हुआ है, या खुद को सहेज है रहा,
ये अटका हुआ है, या अपनी जड़ें  है जमा रहा,
ये रुक हुआ नहीं, पंख फैलाने की तयारी में है,
ये बीज़ है, जिसको सावन मिल गया,
ये मन में है मेरे, साकार हो रहा,
ये तैयार है खुलने को, बाहर की धूप में चमकने को,
ये तैयार है बढ़ने को, सबके साथ मिलने को,

ये अंकुर है, जिसको खुद पर ऐतबार है,
ये अंकुर है, जो कल के लिए तैयार है.

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