परतों पर परतें हैं ,
परतों में छुपे हैं हम,
परतों में गुम हैं,
या परतों में दबे हैं हम,
दमकती हैं, दृढ़ हैं, ऊपर की जो परतें हैं,
दिखती हैं ये दुनिया को, इसलिए इन्हें चमकाते रहते हैं,
अंदर की कुछ परतों में गहरे गम के छींटे हैं,
कुछ यादें खट्टी मीठी सी, कुछ सपने अधूरे हैं,
जब दुनिया में निकलते हैं, लोगों से मिलते हैं,
हम परतें बदलते हैं, नयी परतों में सजते हैं,
अंदर कांच सा कुछ हैं, शायद परतें काम आती हैं,
कुछ अपने मिलते हैं, तन्हा कुछ लम्हें मिलते हैं,
कुछ परतें सरकती हैं, हम फिर से दिल को ढकते हैं,
किसी की आँखों में हमारे गम की परछाई छाने से,
डर लगता हैं किसी की आँख का आँसू बन जाने से,
ये ना समझना की परतें सारी ग़म सी काली होती हैं,
नहीं ये सब निराली होती हैं, कुछ अभिमान की, कुछ अपमान की,
चाहे जिस रंग की भी हों, ये जिंदगी पर भारी होती हैं,
मैं सोच रही हूँ, ये अचानक इन परतों से मुझे ऐतराज़ क्यों है,
में क्यों ओढ़े हूँ इन्हें , मेरा मन परेशान क्यों हैं,
आज एहसास हुआ, ये परतें जिंदगी तबाह करती हैं,
इसलिए आज मेरी क़लम तुम्हें आगाह करती हैं,
ये परतें रोशनी को रोक देती हैं,
अंदर के समंदर को बांध देती हैं,
ये चुभती हैं, चलना दूभर करती हैं,
ये खींचती हैं ओर नयी परतें जोड़ लेती हैं,
ये परतें सुनने नहीं देती हमें ब्रह्म नाद को,
ना समझने देतीं हैं खुद की आवाज को,
आप पूछेंगें, आज परतों पर इतनी सोच क्यों हैं,
ये परतें तो सालों पुरानी हैं,
जिंदगी आगे बढ़ने की कहानी है,
भुल जाओ इन यादों को परतों में दफ़न कर दो,
में बतलाती हूँ, मैंने करके देख लिया ये सब,
यादें दफ़न करने से दिल पर बोझ बन जाती हैं,
थका देता है ये बोझ, आगे बढ़ने नहीं देता,
इनको हटाने का मैंने अब ठान लिया है,
लेकिन कोई तरीका दिखाई नहीं देता,
ये परतें वक़्त हैं, जो हम पर गुजरा है,
ये परतें वक़्त है, जँहा मन उलझा ठहरा है ,
चले जाने दो इसे, वक़्त पर किसका पहरा है,
जो तुम वक़्त को पकडे रहोगे, तो सब से पीछे रहोगे,
वक़्त के चक्रव्यूह में फंसे रहोगे,
जितनी हिम्मत करोगे, उतना थकोगे,
हटेंगी तो थोड़ा दर्द होगा, मन बेचैन होगा,
मगर ठान लिया हो तुमने भी, अगर इन्हें उतार फेंकने का,
तो मैं बताती हूँ, मुझे मिला है इक तरीका बिलकुल माँ जैसा,
दर्द में सबको पहले माँ याद आती है,
माँ हौले से, बस फूंक से सब दर्द उड़ाती है,
कुछ ऐसा ही है, माँ के प्यार सा,
और कड़क और असरदार भी, माँ की डांट सा,
जैसे माँ के पास होने से, सब अपने आप साफ और सही हो जाता है,
बस वैसा ही है हवा सा हल्का मगर धरती सा सामर्थवान,
बस अब इन परतों को छोड़ दो, ये उड़ जाएँगी,
ये प्रवाह जब तुम्हारी सांसों में घुलेगा, तो बह जाएँगी,
और जब अंतर्मन से परतें हटेंगी, सबको दिखेगा जो अंदर कांच सा था,
परतों में जिसकी चमक बुझ सी गयी थी,
उस पर फिर प्रकाश की किरणें बिखरेंगीं,
फिर वह पारस चमकेगा, खुद को ज़ाहिर करेगा,
क्रम ये मगर, अब नहीं रुकेगा, हर दिए से दूसरा दिया जलेगा।
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